दूसरे दिन की श्री राम कथा में तीर्थ निवासियों के आचरण बताएं,पवित्र नगरी के पहले पूर्ण सात्त्विक होने का संकल्प लें – पं. सुलभ  महाराज

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) सामाजिक न्याय परिसर में चल रही नव दिवसीय श्रीराम कथा में श्रीराम कथा व्यास पं. सुलभ शांत गुरु महाराज जी ने याज्ञवल्क्य मुनि एवं भरद्वाज मुनि के प्रसंग को तीर्थ के साथ जोड़ते हुए बताया कि तीर्थ नगरी में रहने वाले तीर्थ निवासियों में क्या गुण व आचरण होना चाहिए। तीर्थ निवासी में प्रेम की प्रधानता होनी चाहिए स्वार्थ रहित होकर आने वाले दर्शनार्थियों और श्रद्धालुओं की सेवा का भाव होना चाहिए ना कि लोभ और लालच में उसे लूटने का । उसका ह्रदय उदारता से भरा  होना चाहिए और उसका घर और दिल आने वाले भक्तों के लिए सदा खुला रहना चाहिए। महाकाल आने वाले दर्शनार्थी यहाँ से अच्छी स्मृति ले के जाए ना की बुरी यादें यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है। ख़ासकर मंदिर के अधिकारी और कर्मचारी इस बात का विशेष ध्यान रखे मंदिर में दर्शन का सभी को समान अधिकार है वहाँ न कोई बड़ा है न कोई छोटा न अमीर न ग़रीब एक ही दरबार है जहाँ सबको समान देखा जाता है वो है भगवान का और फिर हमारे महाकाल तो राजा के रूप में विराजते हैं यहाँ,  उनके यहाँ अन्याय हो यह बिलकुल ठीक नहीं। दूसरे आचरण में कहा कि तीर्थ निवासी तामसी नहीं तपस्वी होना चाहिए मदिरा, अभक्ष भोजन यहाँ तक लहसुन प्याज़ जैसे पदार्थों से भी दूरी रखना चाहिए । पवित्र नगरी के नागरिकों को भी पवित्र होना बहूत आवश्यक है पवित्र नगरी का निवासी पूर्ण सात्विक होना चाहिए। नगरी चाहे पवित्र घोषित न भी हो तो भी हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम पवित्र और सात्विक रहेंगे। विचारों की सात्विकता आहार की सात्विकता से ही संभव है । उन्होंने बताया कि वृन्दावन आदि क्षेत्र में होटल रेस्तरां तक में लहसुन प्याज़ वर्जित हैं, तो क्या हम लोग अपने घरों में इसका त्याग नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक नगरी में रहने वाले लोगों में दया का भाव होना चाहिए।पर्वकाल में तीर्थों का महत्व बहुत बढ़ जाता है पर्व पर समय समय पर देवता भी इन नगरियों में आते हैं। द्वितीय दिवस की कथा में पूज्य महाराज जी ने शिव सती प्रसंग सुनाया जिसमें उन्होंने सत्संग की महिमा समझायी।

मन, वचन व काया से एक हो, संयोग से पर्यूषण
महाराज श्री ने जैन समाज को भी कथा के मध्य में पर्यूषण पर्व की शुभकामनाएं दी और महावीर के चरित्र को कथा से जोड़ते हुए बताया की चौथा जो आचरण है वो मन, वचन काया से एक जैसा आचार विचार और व्यवहार हो।  छल, कपट चतुराई ये बुराई अवगुणों से सदा दूर रहें। तीर्थ निवासी स्वप्नों में भी किसी से छल ना करे जागृत की तो बात ही नहीं। महावीर प्रभु कहते हे, मेरी इच्छा बगैर मुझे कोई दुःख नहीं दे सकता।