पारंपरिक कत्थक नृत्य में पौराणिक कथाओं का वर्णन नृत्य के द्वारा ही किया जाता था-गरिमा आर्य

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी)    हस्त मुद्राएं ही भारतीय शास्त्र नृत्य की भाषा है जिनके माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति की जाती है। प्रत्येक शास्त्रीय नृत्य के प्रदर्शन की अलग शैली होती है। अलग अलग वेशभूषाएं होती है जिनके माध्यम से भी शास्त्रीय नृत्यों की पहचान की जा सकती है। पारंपरिक कत्थक नृत्य में पौराणिक कथाओं का वर्णन नृत्य के द्वारा ही किया जाता था।

यह जानकारी स्पीक मैके एवं तक्षशीला नईदिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला प्रदर्शन के दौरान बुधवार प्रात: 11.30 बजे शासकीय उमावि. दतोदर में लखनऊ घराने की नृत्यांगना गरिमा आर्य ने विद्यार्थियों को दी। यहां अतिथियों का स्वागत प्राचार्य भरत व्यास ने किया। अपनी दूसरी प्रस्तुति दोपहर 1 बजे शासकीय माध्यमिक विद्यालय सुनवानी गोपाल में देते हुए डॉ. गरिमा ने पं. बिरजू महाराज द्वारा संगीतबद्ध राग बसंत तीन ताल सोलह मात्रा में निबद्ध ऋतु बसंत नृत्य प्रस्तुत किया जिसमें बसंत ऋतु में प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का वर्णन करते हुए बताया कि बसंत ऋतु में धरती कैसे फूलों की पितांबर चुनर ओढ़ लेती है। यहां कलाकारों का आभार शिक्षक सुरेंद्रचंद्र शर्मा ने माना। स्पीक मैके के प्रदेश समन्वयक पंकज अग्रवाल नेे जानकारी देते हुए बताया कि दोपहर 3 बजे शासकीय उमावि. जवासिया में सुश्री गरिमा ने विद्यार्थियों को कत्थक में प्रयुक्त होने वाले हस्तक, तोड़े इत्यादि सिखाए साथ ही दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली विभिन्न हस्त मुद्राओं को भी सिखाया। यहां आभार प्रधान अध्यापक क्षत्रपाल सिंह ठाकुर ने माना।