उज्जैन से जुड़ा है सिद्ध चक्र मंडल विधान का इतिहास- दुर्लभ मति माताजी

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) दुर्लभ मति माताजी के सानिध्य में श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर लक्ष्मी नगर में बुधवार से श्री सिध्दचक्रमहामंडल सामुहिक रुप से प्रारंभ हुआ। सिद्ध चक्र मंडल विधान की विशेषता बताते हुए माताजी ने उज्जैन के पौराणिक इतिहास का भी वर्णन किया।     उल्लेखनीय है कि श्री 105 आर्यिकारत्न दुर्लभमति माताजी ससंघ सानिध्य में गुरुवर आचार्यश्री विद्यासागरजी का आशिर्वाद, प्रतिष्ठाचार्य ब्र. अरुण जैन एवं पंडीत खुमानसिंह के निर्देशन में साधर्मियों के सहयोग से सोत्साह संपन्न किया जा रहा हैं। मंदिर प्रांगण में तय समय सुबह से नित्य नियम पूजा से शुरु हुई। मंडलजी की पूजा में चयनित विभिन्न पात्रों, साधर्मियों ने भाग लेकर धर्मलाभ प्राप्त किया। विशेष रुप से माताजी ने सिध्दभगवान की आराधना से श्रीपाल मैना सुन्दरी के चारित्र्य पर पौराणिक महत्व प्रवचन में बताते हुये कहा श्रीपाल राजा को कोढ होने पर शरीर यातनायें पर मैना सुन्दरी ने सिध्दचक्रमंडल विधान पूजा करने पर पूण्यार्जन से, भक्ती से पीडा दुर हुई। इसमें विशेष बात यह है कि यह संपूर्ण कथा उज्जैन पर आधारित है। उज्जैन में ही राजा को इस बीमारी से मुक्ति मिली थी एवं अनेक पुण्य का सर्जन हुआ था उसी का दृष्टांत देकर इस विधान से जीवन में सार्थकता का महत्व बताया। फ्रीगंज से श्री चंद्रप्रभु की, लक्ष्मीनगर सेठीनगर श्री शांतिनाथ दि जैन मंदिर से श्री महावीर भगवान ओर ऋषिनगर मंदिरजी से श्री पार्श्वनाथ भगवान की मुर्तियों का अनुठा संगम चौराहे से श्री दुर्लभमति माताजी के सानिध्य में साधर्मियों के साथ जुलुस के रुप में लाकर मंडल पर श्री जी की मंत्रोचार से स्थापना कर अभिषेक-शांतिंधारा की गई। यह दृष्य पंचकल्याणक की भांति लग रहा था। विधान के दौरान आचार्य गुरुवर श्री 108 विद्यासागरजी के फोटो का अनावरण स्नेहलता सोगानी, वर्षा सुनील खुरईवाले, नरेंद्र बिलाला, अशोक जैन गुनावाले, सुशीला विनीता कासलीवाल के हस्ते दीप प्रज्वलन कर संपन्न किया गया। मंडल की पूजा में साधर्मियों में श्री जी की आराधना, पात्रों द्वारा चारों दिशाओं में स्थापना, श्रीफल के साथ अर्घ्यादि, जयमालाओं में चंवर के साथ भक्तीभाव से आराधना में समर्पित हो गये थे। समाज के सचिव सचिन कासलीवाल ने बताया कि प्रथम दिवस पर माताजी का ससंघ सानिध्य, समर्पण की भावना, प्रतिष्ठाचार्य का विधान को विस्तार से समझाना, भजनों से भक्ती, लयबध्द संगीत, मधुर आवाज, महिलाओं, पुरुष का केसरीया-श्वेत वस्त्र परिधान, पंक्तिबध्द विनयपूर्वक पूजा से ओतप्रोत कार्यक्रम 11.30 पर सानंद संपन्न हुवा।