शरद पूर्णिमा का धार्मिक व सामाजिक के साथ-साथ आयुर्वेदिक महत्व

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद महाविद्यालय के डॉ.जितेन्द्र कुमार जैन और डॉ.प्रकाश जोशी ने जानकारी दी कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष शरद पूर्णिमा शुक्रवार 30 अक्टूबर के दिन मनाई जायेगी। शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आती है। शरद पूर्णिमा का धार्मिक और सामाजिक के साथ-साथ आयुर्वेदिक महत्व भी है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस कारण यह तिथि विशेष महत्व रखती है।
आयुर्वेद में शरद पूर्णिमा का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार ऋतु विभाजन के क्रम में विसर्गकाल का विभाजन वर्षा, शरद और हेमन्त ऋतु में होता है। विसर्गकाल में सूर्य दक्षिणायन में गति करता है तथा चन्द्रमा पूर्ण बल वाला होता है। समस्त भूमण्डल पर चन्द्रमा अपनी किरणों को फैलाकर विश्व का निरन्तर पोषण करता है, इसीलिये विसर्गकाल को सौम्य कहा जाता है।
आयुर्वेद के मत अनुसार वर्षा ऋतु में पित्त का संचय होता है तथा शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप होता है। प्राचीनकाल से ही पूर्णिमा का लोगों के जीवन में काफी महत्व रहा है, क्योंकि दूसरी रात्रियों के मुकाबले इस दिन चन्द्रमा ज्यादा चांदनी बिखेरता है। आयुर्वेद के आचार्य चरक ने शरद ऋतुचर्या के क्रम में स्पष्ट किया है कि शरद ऋतु में उत्पन्न फूलों की माला, स्वच्छ वस्त्र और प्रदोष (रात्रि के प्रथम प्रहर) काल में चन्द्रमा की किरणों का सेवन हितकर होता है।
श्वांस रोग और शरद पूर्णिमा
आयुर्वेद के आचार्यों ने श्वांस रोग को पित्त स्थान से उत्पन्न व्याधि माना है। श्वांस रोग में शरद पूर्णिमा पर खीर खाने की परम्परा है। खीर दूध में चावल से बनाई जाती है। आचार्य चरक ने क्षीर को जीवनीय बताया है। दुग्धरस में मधुर शीतल गुण स्निग्ध गुरू मन्द प्रसन्न गुणों से युक्त होता है। चावल शीतल मधुर स्निग्ध त्रिदोषशामक होता है। दूध और चावल से बनी हुई खीर मधुर रस वाली होती है, जो पित्त का शमन करती है। शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखी हुई खीर में चन्द्रमा की सौम्य किरणों के प्रभाव से शीतल गुण की वृद्धि होती है। आचार्य चरक ने लोकपुरूष साम्य सिद्धान्त के सन्दर्भ में वर्णन किया है कि लोकगत भाव सौमपुरूष गत भाव प्रसाद गुण की वृद्धि करता है। श्वांस रोगियों को विशेषत: आयुर्वेदिक औषधियों से सिद्ध खीर का सेवन करना चाहिये।