राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत की मूल अवधारणा का फल है,विज्ञान से बढ़कर आध्यात्मिक दृष्टि से शिक्षा  का महत्व ज्यादा – अवनीश भटनागर           

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) स्वतंत्रता काल के बाद से ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर विभिन्न आयोगो द्वारा समय-समय पर विभिन्न सुझाव प्रदान किए गए। सभी सुझावों का मूल तत्व पंचकोशीय  शिक्षा  शारीरिक शिक्षा, योग शिक्षा, संस्कृत शिक्षा, संगीत शिक्षा, नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा था और इन्ही सभी कोषों का समावेश करते हुए भारतीय जीवन मूल्य आधारित शिक्षा पद्धति का प्रार्दुभाव हुआ। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत की मूल अवधारणा का फल है। यह विचार विद्या भारती मालवा प्रान्त विद्वत परिषद द्वारा आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में मुख्य वक्ता माननीय अवनीश भटनागर, अखिल भारतीय महामंत्री विद्या भारती नई दिल्ली द्वारा बताया गया।
आपने बताया कि रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने  शिक्षा   की व्याख्या करते हुए कहा कि  शिक्षा  में से संस्कृति, संस्कार और  राष्ट्र क्ति को निकाल दे तो ऐसी  शिक्षा से शिक्षित व्यक्ति चेतना विहीन जीवन जीता है। यदि इस राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाना है तो एक सशक्त  शिक्षा  नीति इस नवीन पीढ़ी को सोंपनी होगी।  शिक्षा  केवल नोकरी के लिए नहीं होती है ज्ञान पाप्ति के लिए होती है। सत्य-असत्य, मिथ्या, अहंकार, पाप-पुण्य जैसे जीवन के व्यवहार में इनके अर्थों को समझना यही  शिक्षा  है।  शिक्षा  का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरण करना हम सब की जिम्मेवारी है। पूर्व ज्ञान के साथ स्वयं अनुभूत ज्ञान को जोड़कर आगामी पीढ़ी को राष्ट्र के प्रति समर्पित एवं समाज के प्रति जिम्मेदार बनाती है।
बढ़ते हुए आत्महत्या के मामले, लिवइन रिलेशन शीप जैसे कई आधुनिक  शिक्षा  के दुःष्परिणामों से दूर हूई पीढ़ी को आनंदमय जीवन के लिए जीवनमूल्य यूक्त  शिक्षा आवश्यक हो गई है। भारत देष में जितने भी आयोग गठित हुए हैं ( शिक्षा  के लिए) उन सबने जीवनमूल्य युक्त  शिक्षा  को महत्ता दी है।
राष्ट्रीय  शिक्षा   नीति 2020 में 25 फोकस एरिये पर ध्यान केन्द्रित किया है जिसमें 12 शिक्षण के विषय 8 पाठ्य सहगामी क्रियाएं हैं एवं 5 विषयों में विशेष है, क्रास कटिंग एरिया जिसमें छात्र-छात्राओं को बिना पाठ्य पुस्तक, बिना पाठ्यक्रम, बिना शिक्षक से पढ़ाया जाने वाला विषय है। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि पानी विज्ञान में H2O किन्तु हरिद्वार की गंगा में एवं उज्जैन की क्षिप्रा में माँ मानकर पूजा की जाती है।
स्कूल  शिक्षा  , प्रष्नोत्तर लिखना, परीक्षा देना, नौकरी लगना केवल इतना ही माना जाता था किन्तु सभी शिक्षाविदों ने  शिक्षा  को मातृभूमि एवं राष्ट्रीयता के साथ जोड़ा है। जिससे विद्यार्थी इस मातृभूमि को, इस देश को, इस समाज को अपना मानकर सेवा में रत रहता है।
इस नीति के अन्तर्गत देश के भविष्य विद्यार्थी एवं यूवा के व्यक्त्वि के सर्वांगीण विकास से राष्ट्र की प्रगति और राष्ट्र की प्रगति से विश्व का कल्याण तय है।
कार्यक्रम के विषेष अतिथि कुलपति, महर्षि पाणीनी संस्कृत विष्वविद्यालय माननीय  विजय मोहन जी सी.जी. ने राष्ट्रीय  शिक्षा   नीति के देषव्यापी समर्थन को लेकर कहा कि नीति आने वाले समय में छात्र हित में बहुत ही महती भूमिका निभाने वाली है बषर्त इस  शिक्षा  नीति का बड़ी गहनता के साथ अध्ययन करने की आवष्यकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे तरूण शाह ने राष्ट्रीय  शिक्षा   नीति पर अपनी बात कहते हुए कहा कि एक नकारात्मक निर्णय व्यक्ति के जीवन में इतना बड़ा प्रभाव डालता है कि वह अपने जीवन का व्यवहारिक दृष्टि से पूर्ण उपयोग ही नहीं कर पाता है।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. राजेन्द्र गुप्त ने, परिचय महेन्द्र भगत ने, स्वागत सरस्वती शिशु मंदिर समिति के सम्मानित सदस्यों ने एवं आभार विद्वत परिषद मालवा प्रांत के संयोजक अम्बिकादत्त कुण्डल ने किया।
इस व्याख्यानमाला में नगर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के पदाधिकारी एवं अधिवक्ता, चार्टड एकाउण्टेन्ट, चिकित्सा, कोचिंग एसोसिएशन एवं विभिन्न क्लब लायंस, रोटरी एवं नगर के विद्वतजनों ने सहभागिता की। वंदेमातरम् गान  के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।