होलकर राजाओं के महलों से लेकर इंग्लैंड के घरानों में चित्रकला के क्षेत्र में नाम कमाने वाले,जैन मंदिरों में सोने की कारीगरी के जादूगर ने किया इस दुनिया को अलविदा,नहीं रहे बालकृष्ण पेंटर 

सनावद,(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) स्वर्ण का काम और चित्रकारी के दम पर सनावद का नाम राष्ट्रीय स्तर पर चमकाने वाले चित्रकार बालकृष्ण रामचंद्र गायकवाड़ (89) ने इस दुनिया से गत दिवस विदा ली। सनावद के रहने वाले बालकृष्ण गायकवाड़ उस परिवार से रहे जो चार पीढिय़ों से राजा रजवाड़ों के महलों में चित्रकला की कारीगरी करते नजर आए हैं।। उनके पिता रामचंद्र गायकवाड़ भी होलकर राजाओं के महलों में चित्रकला करते थे। उनके यहाँ आने वाले अंग्रेज इंग्लैंड तक कलाकृतियाँ ले जाते थे। 1929 के आसपास इंदौर में स्थित लालबाग, माणकबाग, इंद्रभवन, अनूप भवन व जैन मंदिरों में सोने को गलाकर व वरक से कारीगरी की तो चित्र भी जीवित हो उठे थे होलकरों के यहाँ आने वाले अंग्रेजों ने रामचंद्र को इंग्लैंड ले जाने को कहा लेकिन बालकृष्ण के पिता इसलिए नहीं गए कि भारत उन्हें सबसे ज्यादा प्यारा था।

सोने से करते मूर्तियों पर पेंटिंग
मंदिर में मूर्तियों के पास बने बुर्ज व संगमरमर के गुंबदों पर पेंटिंग और सोने से कारीगरी का काम करने वाला देश में‌ इनका पहला परिवार है। जो असली सोने से मूर्तियों के आसपास बेल बूटे से लेकर डिजाईन बना रहे हैं। पिता के साथ ही मनोज और उनके बेटे भी अपनी हाथों की कला से इस कार्य परंपरा में सहयोगी हैं।
कलाकारी को मानते थे भगवान का स्वरूप
भगवान की मूर्तियों के पीछे बालकृष्ण की बनाई कलाकृति भक्त को अपनी ओर खींचती नजर आती है। वह कहते थे, मैं जैन नहीं हूं लेकिन काम से पहले दर्शन करता तो पीछे मुझे कल्पवृक्ष दिखता था। मैं कलाकारी को ही भगवान का रूप भी मानता हूँ। उन्होंने बेल बूटे खींचकर नई तरह का कल्पवृक्ष बनाऐ है ।
मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारे से लेकर जैन मंदिरों में की है चित्रकारी
बालकृष्ण ऐसे चित्रकार रहे जो कूची जहाँ रखना चाहते हैं वहीं रखते । उनके सधे हाथ व बढ़ती उम्र में भी पैनी नजर का समन्वय साफ दिखाई देता देता जो आश्चर्यजनक या कहें भगवान का आशीष ही है। उनके पिता रामचंद्र के बारे में बताते हैं कि इंदौर में रजवाड़ों के यहाँ चित्रकार थे। जैन मंदिरों के काम के लिए सनावद आए। यही काम करते चार पीढ़ी निकल गई। बालकृष्ण की विशेषता रही है कि उन्होंने जैन धर्म के धर्मस्थलों ही नहीं हिंदू मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरूद्वारों में भी महीन कारीगरी की है। पारसी धर्म के स्थलों पर काम नहीं कर पाए इसका मलाल जरूर रहता।
बालकृष्ण की पैंटिंग हमेश नई लगती हैं
बालकृष्ण ने सनावद की जरदार चौक मस्जिद में जो बेहतरीन कारीगरी की थी। वे इंग्लैंड के कलर यूज करते हैं जो काफी महंगे होते हैं। ओंकारेश्वर के कुछ मंदिरों एवं धर्मशालाओं में बनाए चित्रों को देखकर लगता है कि वे बोल उठेंगे। बड़वाह व सनावद के सिख समाज ने भी इस कलाकार से अपने धर्मस्थलों में चित्रकारी करवाई। है । सनावद व भीकनगांव के चर्चों में सुंदर उड़ती परियाँ देखकर लोग आज भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।
ऊन के पावागिरी में मंदिर की छत पर भगवान महावीर की माता को चित्रकारी से सोलह स्वप्न उस समय देखते बताया है जब भगवान का इस धरती पर पर्दापण होने वाला था। मंदिर के अलग-अलग दिशाओं के दरवाजों से घुसने पर लेटी हुई मुद्रा में माताजी दर्शक की तरफ ही करवट में दिखाई देती हैं। मंदिर की छत अंडाकार मुद्रा में है जो थ्री डी की तरह श्रद्धालुओं को आज भी दिखती है। इसे भगवान और विज्ञान का चमत्कार ही माना जाता है। बड़वानी के बावनगजा, हस्तिनापुर, औरंगाबाद मंदिर, सांगली, सिद्धवरकूट के जैन मंदिरों में काम की बारीकी सबको हैरत में डाल देती है।
चौथी पीढ़ी भी चित्रकारी में
बालकृष्ण के पिता रामचंद्र गायकवाड सतारा महाराष्ट्र से पहले धार, इंदौर फिर सनावद पहुंचे और यही बसे। तीसरी पीढ़ी के मनोज गायकवाड़ के पिता के साथ विगत 30 साल से चित्रकारी कर रहे हैं। चौथी पीढ़ी के दीपांश गायकवाड़ 17 साल की उम्र से ही पेंटिंग कर रहे हैं।