नई दिल्ली। गुरु नानक देवजी के 550वें प्रकाशोत्सव वर्ष पर मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सिखों की लंबे वक्त से चली आर रही मांग को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नाक से लेकर अंतरराष्ट्रीय सीमा तक करतारपुर कॉरिडोर बनाने का फैसला लिया है।
बता दें कि यह प्रोजेक्ट सारी आधुनिक सुविधाओं से लैस होगा और इसका खर्च भी केंद्र उठाएगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को इस बात की जानकारी दी। करतापुर कॉरिडोर गुरुद्वारा दरबार साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं को सालभर आसान और आरामदायक सफर करने में मददगार होगा।
इतना ही नहीं भारत पाकिस्तान की सरकार से भी उनकी सीमा में उपयुक्त सुविधाओं से लैस एक ऐसा ही कॉरिडोर बनाने का आग्रह करेगा। गौरतलब है कि करतापुर साहिब कॉरिडोर को लेकर काफी समय से मामला गर्माया है। सिख संगठन इसे लेकर कई बार केंद्र और राज्य सरकार से गुहार लगा चुके हैं।
वजोत सिंह सिद्धू पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में गए थे। वहां से लौटने के बाद सिद्धू ने कहा था कि पाक सेनाध्यक्ष ने उन्हें बताया कि गुरु नानकदेव के 550वें प्रकाशोत्सव पर पाक श्री करतारपुर साहिब मार्ग खोलने पर विचार कर रहा है।
गौरतलब है कि पाकिस्तान साल 2001 से कहता आया है कि अगर भारत भी चाहे, तो वह इस कॉरिडोर को खोल सकता है। इससे पहले भी करतारपुर साहिब कॉरिडोर बनाने के प्रयास शुरू हुए थे। जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान की तरफ 1.5 किलोमीटर कॉरिडोर बनाने को सहमति दी थी, लेकिन वह मामला आगे नहीं बढ़ सका।
यह है श्री करतापुर साहिब गुरुद्वारे का महत्व
श्री करतापुर साहिब गुरुद्वारे को पहला गुरुद्वारा माना जाता है, जिसकी नींव श्री गुरु नानक देव जी ने रखी थी। उन्होंने यहां से लंगर प्रथा की शुरुआत की थी। यह स्थल पाकिस्तान में भारतीय सीमा से करीब चार किलोमीटर दूर है। अभी पंजाब के गुरदासपुर में डेरा बाबा नानक बार्डर आउटपोस्ट से दूरबीन से भारतीय श्रद्धालु इस गुरुद्वारे के दर्शन करते हैं।
श्री गुरुनानक देव जी का 550 वां प्रकाश पर्व 2019 में वहां मनाया जाना है। इस अवसर पर सिख समुदाय इस कॉरिडोर को खोलने की मांग जोर शोर से कर रहा है। सिखों के पहले गुरु श्री नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 15 साल करतारपुर की धरती पर ही गुजारे थे।
यहां खुद खेती करके उन्होंने समाज को ‘किरत करो, वंड छको और नाम जपो’ का संदेश दिया था। यहीं उन्होंने अपना शरीर भी छोड़ा था। यह गुरुद्वारा पटियाला स्टेट के महाराजा भूपेंद्र सिंह ने 1947 में बनवाया था। अभी यह गुरुद्वारा निर्माणाधीन ही था कि भारत पाक विभाजन हो गया।