मां लक्ष्मी का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ , 24 अक्टूबर सुबह 11ः38 से 25 अक्टूबर दोपहर 12ः35 तक रहेगा पुष्य नक्षत्र का योग, गुरु पुष्य नक्षत्र में शुभ कार्य समय मुहुर्त 12 से 1.30 और 4.30 से रात्रि 9 तक

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) 24 अक्टूबर मास कार्तिक पक्ष- कृष्ण तिथि अष्टमी गुरुवार को पुष्य नक्षत्र कर्क राशि में मंगल चंद्र साथ होने से लक्ष्मीनारायण योग के साथ सर्वार्थ सिध्दि योग, अमृत सिद्धि योग सहित अनेको अनेक शुभ योग बन रहे है। पंचांग के अनुसार 24 अक्टूबर को दोपहर 11ः38 से 25 अक्टूबर 12ः35 तक पुष्य नक्षत्र का योग रहेगा। गुरु पुष्य नक्षत्र में शुभ कार्य समय मुहुर्त दोपहर 12 से 1.30 और शाम 4.30 से रात्रि 9 तक तक रहेगा।
श्री मातंगी ज्योतिष केंद्र के ज्योतिर्विद पं. अजय कृष्ण शंकर व्यास के अनुसार पुष्य नक्षत्र में किए गए कार्य पुण्यदाई और तुरंत फल देने वाले होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पुष्य नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से 8वें स्थान में आता है। पुष्य नक्षत्र की राशि कर्क है। सूर्य, नक्षत्र अनुसार जुलाई के तृतीय सप्ताह में पुष्य नक्षत्र में गोचर करता है। पुष्य नक्षत्र का मास पौष चन्द्र मास का उत्तरार्ध होता है, जो जनवरी मास में पड़ता है। 27 नक्षत्रों में से पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभ पुण्य पावन पवित्र माना जाता है। पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा जाता है। पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई वस्तुएं स्थायी रूप से बनी रहती। पुष्य नक्षत्र में विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य किया जा सकता है। शास्त्रोक्त बताया गया है ब्रह्मा जी ने अपनी पुत्री शारदा का विवाह गुरु पुष्य नक्षत्र में करने का फ़ैसला किया था। पं. व्यास के अनुसार मां लक्ष्मी का जन्म भी पुष्य नक्षत्र में हुआ था जिनकी पूजा करने से धन संपदा में वृद्धि होती है। गुरु पुष्य योग में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। माता लक्ष्मी को खीर, दूध से बनी मिठाई और भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, पंचामृत, गुड़ आदि का भोग लगाएं। कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। लक्ष्मी नारायण की कृपा से धन-संपत्ति में बढ़ोत्तरी होती है।
ज्योतिर्विद पं. अजय कृष्ण शंकर व्यास ने बताया कि गुरु पुष्य योग को ज्योतिष शास्त्र में बहु शुभ पुण्य पवित्र और महत्वपूर्ण कल्याणार्थ माना जाता है। इस नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह गाय का थन माना जाता हैं। इस योग में किए गए कार्यों में सफलता मिलती है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।
पुष्य पोषण करने वाला नक्षत्र है
ज्योतिर्विद पं. अजय व्यास ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र में पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। सत्ताइस नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र पुष्य है। सभी नक्षत्रों में इस नक्षत्र को सबसे अच्छा माना जाता है। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला होता है। नारद पुराण में बताया गया है कि गुरु पुष्य योग में जन्मे जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, कई कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होते हैं। पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि ग्रह होता है। ज्योतिषशास्त्र में पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ माना गया है। वार एवं पुष्य नक्षत्र के संयोग से गुरु-पुष्य जैसे शुभ योग का निर्माण होता है। देव गुरु बृहस्पति को पुष्य नक्षत्र का अधिष्ठाता देवता माना गया है। पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न जातक की जन्म राशि कर्क तथा राशि स्वामी चन्द्रमा, वर्ण ब्राह्मण, वश्य जलचर, योनि मेढ़ा, महावैर योनि वानर, गण देव तथा नाड़ी मध्य है।
पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण खरीदने का प्रचलन 
पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण खरीदने का प्रचलन है, यह इसलिए हैं, क्योंकि इसे शुद्ध, पवित्र और अक्षय धातु के रूप में माना जाता है और पुष्य नक्षत्र पर इसकी खरीदी अत्यधिक शुभ होती है। पुष्य नक्षत्र में की गई खरीदारी और शुरू किए गए व्यापार में बरकत हमेशा बनी रहती है। इस नक्षत्र में भवन, भूमि, फर्नीचर, ईलेक्ट्रानिक्स, बहीखाते, घरेलु सामान खरीदना भी शुभ होता है। सेना संबंधी कार्य,’’ मुकदमेबाजी-जैसे अदालती कार्य निबटाना, वाहन कलात्मक कार्यों जैसे-विद्या, गायन-वादन, नृत्य आदि के लिए विशेष शुभ होती हैं। प्रॉपर्टी विशेषकर चांदी या चांदी का सिक्का, चने की दाल, धार्मिक वस्तुएं जैसे कि शंख, कलश, चंदन आदि इलेक्ट्रॉनिक्स फ़र्नीचर वस्त्र आभुषण लेना लाभदायक है। सिर पर भस्म का तिलक लगाना लाभदायक सिद्ध है। पुष्य को निवेश करना अच्छा माना गया है। यदि आप सोना, चांदी या शेयर में निवेश करने की सोच रहे हैं कर सकते है। उत्तर, प‍श्चिम और वायव्य दिशा में यात्रा कर सकते हैं। इस दिन गृह निर्माण का शुभारंभ कर सकते हैं। शपथ ग्रहण, राज्याभिषेक या नौकरी ज्वॉइन करने के लिए शुभ दिन। कृषि कार्य या लेखन कार्य का शुभारंभ करना उचित है। दूध और घी का क्रय-विक्रय कर सकते हैं। किसी साधना की शुरुआत करना चाहिए। गुरु पुष्य योग में हल्दी खरीदना शुभ माना जाता है।
पूजा और खरीददारी में लाभ
पुष्य नक्षत्र में जन्मे लोग यात्रा और भ्रमण के शौकीन होते हैं। वाहन सबंधित कार्य होते है। पुष्य नक्षत्र में शिव-पार्वती, इंद्र और बाबा भैरव की पूजा से धन-संपत्ति, वैभव और सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है। पुष्य नक्षत्र के स्वामी ग्रह शनि हैं, पुष्य नक्षत्र के देवता गुरु बृहस्पति हैं। पुष्य नक्षत्र में किए गए काम पुण्यदायी और तुरंत फल देने वाले होते हैं। पुष्य नक्षत्र में जन्मे लोग अध्यात्म में गहरी रुचि रखते हैं और ईश्वर भक्त होते हैं।
विद्या दीक्षा दान का महत्व
पुष्य नक्षत्र में मंत्र दीक्षा, वेद पाठ, यज्ञ अनुष्ठान, गुरु धारण, पुस्तक दान, और विद्या दान करना शुभ माना जाता है। मां लक्ष्मी का जन्म भी पुष्य नक्षत्र में हुआ था जिनकी पूजा  करने से धन संपदा में वृद्धि होती है। गुरु पुष्य योग में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। माता लक्ष्मी को खीर, दूध से बनी मिठाई और भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते, पंचामृत, गुड़ आदि का भोग लगाएं। कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। लक्ष्मी नारायण की कृपा से धन-संपत्ति में बढ़ोत्तरी होती है।
धर्म अर्थ काम मोक्ष का प्रतिक 
पुष्य नक्षत्र कर्क राशि मे आता है जिसके कुछ विशेष मंत्र है ‘‘ॐ चन्द्रमा मनसो जातः चक्षोः सूर्यो अजायत। श्रोताद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत। ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्राय नमः, ऊँ सों सोमाय नमः, ॐ इमं देवा असपत्न सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठयाय महते जानराज्यायेनद्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोमी राजा सोमोस्मांक ब्राह्मणाना राजा।। ओम् श्रेये नमः’ और ’ओम या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण सनस्तिथं, नमःतस्ये नमः तस्ये नमो नमः’।। या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण सनस्तिथं, नमःतस्ये नमः तस्ये नमो नमः’ का जप करें.। ॐ पुष्याय नम, ॐ बृहस्पतये नम, वंदे बृहस्पतिं पुष्यदेवता मानुशाकृतिम्, ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु।
चार राशि वालों के लिए शुभकारी
पं व्यास के अनुसार चार राशि वालों के लिए विशेष शुभ चंद्र मंगल योग, मेष, कर्क, वृश्चिक, और मीन लग्न के लोगों पर विशेष लागू होता है। गुरु ब्रहस्पति इस समय वृषभ राशि मे होने से व्यापार व्यवसाय त्रिगुणात्मक वृध्दी होती है। अन्य सभी राशि संयोग से शुभफलदायी है। चंद्र मंगल योग, हथेली में तब बनता है, जब चंद्र रेखा उभरकर मंगल से मिलती है या भाग्य रेखा और चंद्र रेखा का मिलन होता है लक्ष्मी योग बनता है।