राम के बिना अयोध्या की कल्पना संभव नहीं- प्रो शर्मा

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) राम के बिना अयोध्या की कल्पना संभव नहीं है। अयोध्या शब्द की उत्पत्ति अ $ योद्धा से हुई है जिसका अर्थ है ऐसी नगरी जिससे युद्ध नहीं किया जा सके। भले ही यह नगरी अनादि है लेकिन इसका अस्तित्व राम के कारण ही है। अनंत विस्तार वाले राम के चरित्र की महिमा वाल्मीकि से लेकर तुलसीदास तक सबने गाई है लेकिन डॉ देवेंद्र जोशी की यह पुस्तक राम और अयोध्या के अंतः संबंधों की श्रेष्ठ युगीन व्याख्या प्रस्तुत करती है।
उक्त विचार पूर्व कुलपति और संस्कृत मनीषी डॉ बालकृष्ण शर्मा ने मध्यप्रदेश लेखक संघ के तत्वावधान में वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक डॉ देवेंद्र जोशी की राम मंदिर आंदोलन पर लिखित पुस्तक अयोध्या में राम की वापसी के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए श्री धाम नीलगंगा पर व्यक्त किए। कार्यक्रम के विशेष अतिथि के रूप में संस्कृतज्ञ डॉ केदार नारायण जोशी और प्रमुख वक्ता डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा उपस्थित थे। अध्यक्षता डॉ हरिमोहन बुधौलिया ने की। आरंभ में अतिथियों ने सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया। सरस्वती वंदना सीमा जोशी ने प्रस्तुत की। इस अवसर पर मध्य प्रदेश लेखक संघ के प्रतिष्ठित प्रदेश स्तरीय सम्मान से सम्मानित होने पर डॉ हरीश कुमार सिंह, सूरज नागर और सीमा जोशी का शाल श्रीफल भेंट कर सम्मान किया गया। सम्मान पत्र का वाचन डॉक्टर पिलकेंद्र अरोरा, संदीप सृजन और डॉ पांखुरी वक्त ने किया। इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में प्रो रवि नगाइच, डॉ उर्मि शर्मा, डॉ पुष्पा चौरसिया, सूरज नगर, संदीप सृजन, प्रभात पटेल आदि कवियों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया। मुख्य वक्ता के रूप में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि डॉ देवेंद्र जोशी की यह कृति प्रमाणित करती, सिद्ध करती है कि राम का चरित्र न केवल भारत के लोगों के लिए अपितु संपूर्ण विश्व में निवास करने वाले भारतवंशियों के लिए प्रेरणा और आदर्श का केंद्र है। इस कृति में राम और अयोध्या के बहाने भारत के इतिहास और जनजातीय सांस्कृतिक चेतना को रुपायित किया गया है। राम एक शाश्वत प्रवाह है जिसके सगुण और निर्गुण सभी तरह के ऐतिहासिक चरित्र का गुणगान करती यह कृति अपने समय का सजीव दस्तावेज है जिसके लिए लेखक डॉ देवेंद्र जोशी बधाई एवं साधुवाद के पात्र हैं।
डॉ केदार नारायण जोशी ने इस अवसर पर कहा कि राम की कृपा के बिना इस तरह की ऐतिहासिक कृति का प्रणयन संभव ही नहीं है। यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय होगी और आने वाली पीढ़ी को अपने समय के ऐतिहासिक सत्य से अवगत कराने में मील का पत्थर साबित होगी। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने कहा कि डॉ जोशी की यह कृति आध्यात्मिकता और साहित्य का सुंदर समन्वय है। लेखक ने आध्यात्मिक विषय की इतिहास और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में सुंदर व्याख्या प्रस्तुत की है। कार्यक्रम का संयोजन डॉ हरीश कुमार सिंह, संचालन डॉ देवेंद्र जोशी ने किया तथा आभार उर्मि शर्मा ने माना। इस अवसर पर डॉ पिलकेंद्र अरोरा, डॉ शीलेश्वरी देवी, दिलीप जैन, हरिहर शर्मा, रमेशचंद शर्मा, अक्षय चवरे, सुनीता राठौर, अनिल पांचाल सहित बड़ी संख्या में गणमान्य जन उपस्थित थे।