ज्योतिरादित्य सिंधिया लाएंगे अफ्रीफन चीते, फिर दोहराएगा इतिहास

भोपाल ।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है, मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले स्थित कूनो पालपुर के घने जंगलों के भीतर ठीक 118 साल के बाद इतिहास में दोहराव का ऐसा रोमांचक, रोचक संयोग बनने जा रहा है, जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे. इस इतिहास की पहली इबारत ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के महाराज माधौराव सिंधिया ने 1904-05 में लिखी थी. अब उस इतिहास के दोहराव में उनकी चौथी पीढ़ी के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया सहभागी बन रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय माधौराव सिंधिया स्वयं सरकार थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार का हिस्सा हैं. संयोगों से भरा इतिहास यह है कि माधौराव सिंधिया को जूनागढ़ के नवाब ने गिर के एशियाई शेर देने से इनकार कर दिया था. तब सिंधिया ने दक्षिण अफ्रीका से शेर लाकर उन्हें सबसे पहले कूनो घाटी के जंगलों में बसाया था. उन्हें रखने के लिए डोब कुंंड के पुरातात्विक महत्व के वन क्षेत्र में 20-20 फीट ऊंचे कई पिंजरे बनवाए थे.

अब स्व. माधौराव की चौथी पीढ़ी के वशंज ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय उड्डयन मंत्री के रूप में अफ्रीफन चीते लाकर कूनो के जंगलों में बसाने के लिए चल रही कवायद का हिस्सा हैं. उन्होंने बीते दिनों अफ्रीकी चीतों को भारत लाने की तैयारी को लेकर केंद्रीय श्रम एवं पर्यावरण मंत्री से चर्चा भी की थी.

बता दें कि कूनो नेशनल पार्क की स्थापना गिर गुजरात के एशियाई शेरों को लाकर बसाने के लिए की गई थी. इसका प्रोजेक्ट 26 साल पहले यानी 1996 में शुरू हुआ था, तब जंगल में रहने वाले दो दर्जन से ज्यादा गांवों के डेढ़ हजार से ज्यादा परिवारोंं को विस्थापित किया गया था. इन परिवारों के 5 हजार से अधिक लोगों को अपना जल-जंगल और जमीन छोड़ना पड़ा था. विस्थापित होने वालों की 90 फीसदी आबादी सहरिया आदिवासियों की थी, उनसे जंगल छिने तो आजीविका अपने आप ही छिन गई. नेशनल पार्क में शेर तो अब तक नहीं आ पाए, अलबत्ता सहरिया आदिवासियों की जिंदगी बदहाल होती गई, और वह और गरीब, मजलूम व बेसहारा होते गए. खैर शेर न सही, दक्षिण अफ्रीका से आ रहे चीतों से अब कूनो के जंगल को आबाद करने की कवायद चल रही है.

संयोगों की श्रृंखला
गुजरात और मप्र के बीच गिर के एशियाई शेरों को बसाने के लिए बरसों-बरस बात-विवाद-कवायद चलती रही है. मामला अदालत की चौखट तक जा पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने भी गुजरात सरकार को शेर मप्र को देने के लिए कहा, फटकार भी लगाई, गुजरात सरकार ने मप्र को शेर देने से इनकार तो कभी नहीं किया, लेकिन शेर दिए नहीं, तरह-तरह के बहाने बनाकर मामले को उलझाए रखा गया. इसके पीछे संभवतः मंशा यह है कि गुजरात एशियाई गिर के शेर की वजह से मिली राज्य की पहचान को बांटना नहीं चाहता. बता दें कि एशियाई शेर केवल गुजरात के गिर वन क्षेत्र में ही पाए जाते हैं.

यह भी एक संयोग है कि गुजरात का मध्य प्रदेश को शेर देने से कोई पहली बार इनकार नहीं किया है. ऐसा वो तब कर चुका है, जब देश आजाद नहीं था. गिर क्षेत्र जूनागढ़ की रियासत का हिस्सा था. तब भी जूनागढ़ के नवाब ने ग्वालियर राजघराने के महाराज माधौराव सिंधिया के आग्रह के बावजूद शेर देने पर टाल-मटोल करते हुए दक्षिण अफ्रीका से शेर मंगवाने का सुझाव दिया था,