शंकराचार्य पद पर नियुक्ति का अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने किया विरोध,सन्यासी अखाड़ों की मौजूदगी में होती है शंकराचार्य की घोषणा

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के कैलाशवासी होने के अगले दिन ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्दं्रपुरी महाराज ने बिल्कुल गलत बताया है। श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज ने कहा कि शंकराचार्य की नियुक्ति जिसने भी की है उनको कोई अधिकार नहीं है। सन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में शंकराचार्य की घोषणा होती है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का षोडशी भंडारा व अन्य सनातनी परंपरा अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इसी बीच में शंकराचार्य पद की घोषणा कर दी गई। यह सनातन परंपराओं के विरूध्द है।

श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि इससे पूर्व 1941 में कैलाशवासी स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती की नियुक्ति जूना अखाड़ा व अन्य अखाड़ों की अध्यक्षता में हुई थी। आपने कहा कि जल्दबाजी में की गई शंकराचार्य की नियुक्ति का विरोध करते हैं। क्योंकि उत्तराखंड में गिरि सन्यासियों की संख्या सबसे ज्यादा है। शंकराचार्य उसी सन्यासी को बनाया जाएगा जो भगवान शंकराचार्य के संदेश को जनज न तक पहुंचाने वाला हो। जिसके पास जनसमूह अर्थात श्रध्दालु भक्त हों। वसीयत के आधार पर शंकराचार्य की नियुक्ति नहीं होती। यह स्वयं कैलाशवासी शंकराचार्य जगतगुरू स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था। कैलाशवासी जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने अपने जीते जी किसी को कोई शंकराचार्य घोषित नहीं किया था। भगवान आदि गुरू शंकराचार्य की उपाधि सनातन धर्म और परंपरा की सर्वोच्च उपाधि है। जिस पर सन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में विधि विधान के साथ शंकराचार्य की नियुक्ति होती हैं उन्होंने कहा कि अखाड़े आदिगुरू शंकराचार्य की सेना है लेकिन जल्दबाजी में अखाड़ों को बिना विश्वास में लिए स्वयं घोषणा कर दी जाती है, यह उचित नहीं ।