संतो का धरना तब तक जारी रहेगा जब तक कि सप्तसागर विकास कार्ययोजना पर प्रशासनिक स्तर पर अमल आरंभ नहीं कर दिया जाता

उज्जैन।(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) रामादल अखाड़ा परिषद के संत, महंत, महामंडलेश्वर द्वारा धार्मिक नगरी अवंतिका के सप्त सागरों की दुर्दशा की ओर शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए लगातार दूसरे दिन शनिवार को भी धरना दिया। शुक्रवार से अंकपात मार्ग स्थित श्री गोवर्धन सागर के तट पर धरना प्रदर्शन कर रहे है।

 रामादल अखाड़ा परिषद के सदस्य महंत श्री हरिहरदास, महंत श्री रूपकिशोरदास, महंत श्री बलरामदास ने बताया कि संतो का यह धरना तब तक जारी रहेगा जब तक कि सप्तसागर विकास कार्ययोजना पर प्रशासनिक स्तर पर अमल आरंभ नहीं कर दिया जाता है। गोवर्धन सागर तट पर धरने के दूसरे दिन भी संतो ने रामधुन गाई और कीर्तन किया। धरने को रामादल अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत डा. रामेश्वरदास, समाजसेवी जयप्रकाश शर्मा, सुनील जैन, श्री क्षेत्र पंडा समिति के अध्यक्ष प. राजेश त्रिवेदी आदी ने संबोधित किया।

महंत श्री जयरामदास जी ने कहा कि पुराणों में वर्णित उज्जैन के सप्तसागरों की धार्मिक महत्ता तो है ही, इसके साथ ही सप्तसागर उज्जैन शहर में भूमिगत जल के भंडारण के बड़े संग्रहण केंद्र है। इसके अलावा शहर के पर्यावरण को संतुलित रखने में भी सप्तसागरों का अहम योगदान रहता है। प्रति 3 वर्ष में पड़ने वाले पुरूषोत्तम मास (अधिक मास) में हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन सप्तसागर की धर्मयात्रा कर दान-पूजन आदी करते है। इनमें बड़ी संख्या महिलाओं की होती है। सबसे अहम बात यह है कि इन प्राचीन सप्तसागरों के जल के प्रचुर भंडारण की वजह से पुण्य सलिला मां शिप्रा भी सदा प्रवाहमान रहा करती थी। समय के साथ अदूरदर्शिता और देख-रेख के अभाव में सप्तसागरों की दशा बदहाली की ओर अग्रसर है। समय रहते यदि मध्यप्रदेश शासन इन्हें संरक्षित व संवर्धित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाएगा तो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सप्तसागर तीर्थ समाप्त होते चले जाएंगे। उन्होने कहा कि हम संतजन शासन-प्रशासन से अपेक्षा करते है कि उज्जैन तीर्थ का गौरव बढ़ाने वाले सप्तसागरों के विकास, पुर्नउद्धार और संरक्षण से संबंधित ठोस कार्ययोजना को लागू करे।

संतो की प्रमुख मांग

 

(1) उज्जैन स्थित प्राचीन सप्तसागरों की भूमियों का सीमांकन कर इन्हें शासन आधिपत्य में लिया जाए।

(2) सप्तसागरों की भूमी को अतिक्रमण से मुक्त करावें व भविष्य में इन पर अतिक्रमण नहीं हो, इसके लिए ठोस कदम उठाए जावे।

(3) सप्तसागरों में व्याप्त गंदगी को साफ कर, इनका गहरीकरण इन्हें पुन: धार्मिक महत्ता के अनुरूप बनाया जाए। इनमें शुद्ध स्नान योग्य जल का भंडारण हो सके, ऐसे प्रयास किए जाए।

(4) प्रत्येक सागर पर स्नान, पूजन-अर्चन, दान-पुण्य आदी धार्मिक क्रियाकलापों के लिए स्थान सुनिश्चित कर इन स्थानों का विकास जैसे घाट निर्माण, पुजारियों व श्रद्धालुओं के लिए शेड का निर्माण आदी कार्य कराए जाए।

(5) प्राचीन गोवर्धन सागर में विक्रमादित्य क्लाथ मार्केट व अन्य स्थानों से मिलने वाले प्रदूषित जल को मिलने से रोकने के ठोस उपाय किए जाए।

(6) सप्तसागरों की जमीन व जल के भंडारण में औषधीय पौधो, जड़ी-बुटियों के उत्पादन, इन पर शोध आदी प्रकल्पों को अर्थात सप्तसागरों को आधुनिक व प्राचीन शिक्षा से जोड़कर इन्हें भविष्य के लिए उपयोगी बनाया जाए।