उन्होंने कहा कि संघ में लोगों को कुछ नहीं मिलता बल्कि जो है वो भी चला जाता है. स्वयंसेवक अपना काम इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम में आनंद आता है. उन्हें इस बात से प्रेरणा मिलती है कि उनका काम विश्व कल्याण के लिए समर्पित है. अपने संबोधन के दौरान भागवत ने कहा कि उन्होंने (दादाराव) एक पंक्ति में आरएसएस क्या है. उन्होंने इसकी व्याख्या की.
उन्होंने (दादाराव) कहा कि आरएसएस हिंदू राष्ट्र के जीवन मिशन का एक विकास है. संघ प्रमुख ने आगे कहा कि 1925 के विजयदशमी के बाद डॉक्टर साहब ने संघ के प्रारंभ करने पर कहा कि ये संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन है. जिसको हिंदू नाम लगाना है, उसक देश के प्रति जिम्मेदार रहना होगा. भागवत ने कहा किशुद्ध सात्त्विक प्रेम ही संघ है, यही कार्य का आधार है.
उन्होंने कहा कि हिंदुत्व का सार: सत्य और प्रेम है. दिखते अलग-अलग हैं, लेकिन सब एक हैं. दुनिया अपनेपन से चलती है, सौदे से नहीं. मानव संबंध अनुबंध और लेन-देन पर नहीं, बल्कि अपनेपन पर आधारित होने चाहिए. सरसंघचालक ने कहा कि ध्येय के प्रति समर्पित होना संघ कार्य का आधार है. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी तीसरे विश्वयुद्ध जैसी स्थिति आज दिखाई देती है. अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं स्थायी शांति स्थापित नहीं कर पाईं. समाधान केवल धर्म-संतुलन और भारतीय दृष्टि से संभव है.