इदौर,(स्वदेश mp न्यूज़… राजेश सिंह भदौरिया बंटी) वीणापाणि मां सरस्वती के वरद पुत्र डॉ विकास दवे जी को मध्य प्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक मनोनीत किये जाने से पूरे राष्ट्र का साहित्य जगत प्रफुल्लित हो हार्दिक बधाइयाँ दे रहा है। आप प्रखर वक्ता ,सनातन संस्कृति के संरक्षक , सदैव ही उन्मुक्त मुस्कान के स्वामी , राष्ट्र की उत्कृष्टतम एवम सर्वाधिक प्रसार वाली संस्कृति संस्कार साहित्य एवम विज्ञान से पूरित बाल पत्रिका देवपुत्र के संपादक , लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार ,सहज – सरल- सौम्य- सात्विक -शीलवान , दया – ,करुणा -प्रेम- कृतज्ञता, सौहार्द्रता – सत्य- श्रीर्विद्या सम्पन्न, श्रीर्विजयी उदात्त उत्कृष्ट मॉनवीय गुणों के अनुकरणीय व्यक्तित्व एवम नागर कुल गौरव नरसी मेहता के भजन वैष्णव जन तो ……..को साक्षात अपने जीवन में जीने वाले आदर्श मॉनव हैं। मात्र एक भेंट में आप दवे जी से वांछित से अधिक ज्ञानामृत प्राप्त करेंगे एवम साथ ही आपकी भेंट मॉनव जीवन के लिये अविस्मरणीय हो जावेगी ।असीम आकर्षक व्यक्तित्व के धनी हैं आदरणीय दवे जी। आप मन वचन कर्म और ईमानदारी के देवर्षि हैं। डॉ दवे साहित्य के वे देदीप्यमान प्रखर आदित्य हैं , जिनके नेतृत्व में प्रदेश का साहित्य उनके कार्यकाल में मां नर्मदा की भांति अविरल बहता प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा ।
येषां च विद्या च तपोश्च दानं l
ज्ञानं च शीलम च गुणोश्च धर्मः ll
वसुन्धरा गृहे विकास दवे महाभाग : l मानव रूपेण देवरूपा : वदन्ति ll
भावार्थ :
भाई श्री विकास विद्यावान हैं , आप मां सरस्वती के साक्षात वरद पुत्र हैं, जिन्होंने आजीवन मन वचन औऱ कर्म से पूर्ण निष्ठावान होकर एक तपस्वी की भांति बाल साहित्य में अपना अवदान दिया है, आप ज्ञानवान हैं, सलंग्न जीवन वृत्त आपके उच्च उदात्त एवम शालीन गुणों से युक्त होकर जीवन में अपनाने योग्य व्यक्तित्व है.। आप शीलवान हैं, याने उच्च आचरणों यथा सहज सरल सौम्य सात्विक शान्ति मैत्री दया क्षमा प्रेम करुणा उदारता एवम अहिंसा जैसे उदात्त मानवीय शील गुणों के लिये ईश्वर से अनुग्रह प्राप्त हैं। ऐसे असाधारण व्यक्तित्व के धनी महाभाग सर्वश्री विकास जीवनलाल जी दवे इस श्रेष्ठ व सुन्दर वसुन्धरा गृह पर मानव देह में साक्षात् देव तुल्य हैं,ऐसा सभी इष्ट मित्र साहित्य प्रेमी और नागर वृन्द अन्तर्मन से अभिव्यक्त करते हैं।
आइये देखें छोटे कद में छुपा विराट व्यक्तित्व-डॉ विकास दवे
रतलाम जिले का एक छोटा सा गांव आलोट ।कहने को तो उस युग में इस छोटे से नगर की जनसंख्या कुल जमा 30 -35 हजार हुआ करती थी और समय था साठ के दशक का उत्तरार्ध यानी 1969 ।वही के एक कर्मकांड करने वाले पुरोहित श्री जीवन लाल जी दवे एवम धार्मिक प्रवृत्तियों की धनी श्रीमती सुशीला देवी के घर जन्म लिया एक बालक विकास ने। अत्यंत ही सामान्य आर्थिक स्थिति वाले परिवार में वह युग कुछ बहुत सुविधा वाला युग नहीं था ।बालक विकास की प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए ही हुई । सरकारी स्कूल भी ऐसे जिनमें टाटपट्टियां भी उपलब्ध नहीं थी । नन्हा विकास अपने साथ बिछाने की बोरियां लेकर जाता था । उन्हें सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापक तब यह समझ नहीं पाते थे कि अत्यधिक चंचल और शैतान प्रवृत्ति के इस बालक को कक्षा में शांत कैसे बैठाया जाए ? और चुप कैसे रखा जाए ? किंतु शायद उन्हीं परिस्थितियों में आकार ले रहा था भारत के पत्रकारिता जगत का एक देदीप्यमान नक्षत्र, जो आने वाले समय में न केवल बाल पत्रकारिता जगत बल्कि हिंदी भाषा , बाल मनोविज्ञान , पत्रकारिता , वक्तृत्व कला और हिंदी साहित्य जैसे अनेक क्षेत्रों को समृद्ध करने वाला था। प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं की पढ़ाई के बाद विकास ने जिला मुख्यालय रतलाम जाकर तकनीकी क्षेत्र में इलेक्ट्रिकल की पढ़ाई प्रारंभ की। अध्ययन के साथ-साथ पिताजी की सलाह पर उन्होंने कला के क्षेत्र में स्नातक की परीक्षाएं भी पास की। स्नातक कर लेने के बाद स्नातकोत्तर में हिंदी साहित्य विषय लेकर अध्ययन करते हुए विकास दवे को यह कल्पना भी नहीं थी कि आगे चलकर यही हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा उसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाली है। स्नातकोत्तर करने के बाद सरस्वती शिशु मंदिर में आचार्य के रूप में अपनी सेवाएं देना प्रारंभ की और फिर प्राचार्य होकर उन्हें मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी इंदौर भेजा गया। यह स्थान परिवर्तन विकास दवे के लिए एक परिवर्तनकारी युग सिद्ध हुआ । इंदौर पहुंचने पर उन्हें बाल पत्रकारिता जगत की प्रसिद्ध पत्रिका देवपुत्र के संपादक श्री कृष्ण कुमार अस्थाना ने अध्यापन के क्षेत्र से सीधे पत्रकारिता के क्षेत्र में आमंत्रित कर लिया । 1992 समाप्त होते तक श्री विकास दवे ने भारतवर्ष की प्रख्यात पत्रिका देवपुत्र के संपादकीय विभाग में जुड़कर अपनी साहित्यिक प्रतिभा को प्रकट करना प्रारंभ कर दिया। देखते ही देखते उनकी लेखनी भारत के लगभग सभी प्रसिद्ध समाचार पत्र और पत्रिकाओं में पढ़ी जाने वाली लेखनी बन गई। उनके लेखन के विषय इतने बहुआयामी थे की पढ़ने वालों को उन विषयों का महत्व और उनकी रोचकता सदैव बांधे रखती थी। इसी मध्य श्री विकास दवे को भारत के सबसे बड़े और अशासकीय शिक्षा संस्थान विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से जुड़ने का अवसर भी प्राप्त हुआ। वे चूंकि मूलतः शिक्षक स्वभाव के थे, इसलिए विद्या भारती के कामों में बहुत जल्दी रच गए । इस समय लगभग 25 वर्षों से वे सतत विद्या भारती के राष्ट्रीय स्तर के चिंतन यज्ञों में अपनी आहुति दे रहे हैं । साहित्य जगत में पदार्पण करते ही इंदौर शहर के सभी वरिष्ठ साहित्यकारों के चहेते बन गए। अपने विनम्र स्वभाव के कारण उन्होंने शीघ्र ही न केवल साहित्य क्षेत्र में बल्कि साहित्यकारों के व्यक्तिगत जीवन में भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान बनाना प्रारंभ कर दिया । शीघ्र ही उन्होंने मध्य प्रदेश लेखक संघ के सचिव के रूप में साहित्य क्षेत्र में अपनी पारी खेलना प्रारंभ की। इस समय वे राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों के संगठन अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांत संगठन मंत्री भी है। बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में आने पर उन्हें ध्यान में आया कि विदेशों के विश्वविद्यालयों में अपने अपने देश की भाषाओं में लिखे जाने वाले बाल साहित्य पर शोध के पर्याप्त से अधिक कार्य संपन्न होते रहते हैं किंतु दुर्भाग्य से भारत में हिंदी बाल साहित्य अथवा अन्य भारतीय भाषाओं के बाल साहित्य में शोध की कोई संस्थागत व्यवस्था शासकीय अथवा अशासकीय स्तर पर विकसित नहीं हुई है। उनके मार्गदर्शक श्री कृष्ण कुमार अस्थाना जी के सानिध्य में उन्होंने प्रयास करके देवपुत्र के साथ-साथ भारतीय बाल साहित्य शोध संस्थान की स्थापना की । वर्ष 2002 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जी के द्वारा उद्घाटित यह केंद्र देखते ही देखते भारत का सबसे बड़ा और बाल साहित्य का अपने प्रकार का इकलौता शोध केंद्र बनकर उभरा। शोध केंद्र पर आने वाले शोधार्थियों को मार्गदर्शन देने के लिए इस शोध केंद्र को एक नियमित निर्देशन देने वाले व्यक्ति की आवश्यकता अनुभव हुई। इस कार्य को बगैर शोध कार्य संपन्न किए कर पाना संभव नहीं था इसलिए श्री विकास दवे ने अपने अध्ययन की दूसरी पारी को फिर से प्रारंभ किया उन्होंने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से नियमित छात्र के रूप में लघु शोध उपाधि एम फिल का अध्ययन किया और इसके तुरंत पश्चात “हिंदी बाल पत्रिकाओं का तुलनात्मक अध्ययन” विषय पर दीर्घ शोध प्रबंध लिखकर पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त की। तब से लेकर अब तक डॉ विकास दवे बाल साहित्य जगत के शीर्षस्थ शोध निर्देशकों में शुमार किए जाते हैं। अब तक भारतीय बाल साहित्य शोध संस्थान पर उनके मार्गदर्शन में 60 से अधिक शोधार्थियों ने बाल साहित्य पर रिसर्च करते हुए एमफिल , पीएचडी और डिलीट की उपाधि प्राप्त की है। बाल साहित्य के सृजन में भी वे पीछे नहीं रहे । देवपुत्र में उनके द्वारा लिखे जाने वाले स्तंभ “आचार्य जी की चिट्ठी” लगभग 8-9 वर्षों तक बाल पाठकों के मन में एक आदर सूचक स्थान बनाए रहा। इसी मध्य उनके द्वारा लिखी जाने वाली बाल कहानियों और बाल लेखों के पुस्तक रूप में संग्रह भी प्रकाशित होते रहे। इस समय तक डॉ विकास दवे के की 20 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। वे 150 से अधिक पुस्तकों का संपादन भी कर चुके हैं। शोध के क्षेत्र में मध्य प्रदेश शासन के द्वारा फैलोशिप प्रदान कर उनसे दो पुस्तकों का लेखन भी करवाया गया है। एक दीर्घ शोध परक ग्रंथ “भारत की बाल संस्कार परंपरा- कल आज और कल” लगभग साढे 500 पृष्ठों का एक ऐसा वृहद ग्रंथ है जिसमें वैदिक काल से लेकर सीडी, डीवीडी, ब्लॉग और इंटरनेट के युग तक भारत में बच्चों को संस्कारित करने की परंपराओं का अद्यतन लेखन किया गया है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश शासन के द्वारा प्रदत्त आर्थिक सहयोग से उन्होंने 1857 से लेकर 1947 तक के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर एक शोध परक बड़ा ग्रंथ भी लिखा है ।उनकी कहानी की पुस्तकें “दादाजी खुद बन गए कहानी ” और “सपनों का सच” बच्चों में अत्यंत लोकप्रिय है । इसी मध्य डॉक्टर विकास दवे ने बाल साहित्य क्षेत्र में उन विधाओं के लेखन को प्रोत्साहन देना प्रारंभ किया जो विधाएं बड़ों के साहित्य में तो पर्याप्त मात्रा में प्रचलित थी किंतु बाल साहित्य क्षेत्र में उन पर लेखन कम हो रहा था। अपने इसी प्रयास के अंतर्गत डॉ विकास दवे ने देखा कि बच्चों को लिखे जाने वाली पत्र विधा में बाल साहित्य अत्यंत अल्प मात्रा में उपलब्ध है तो उन्होंने अपनी ही पुत्री को बाल्यकाल में लिखे हुए पत्रों का एक संग्रह और व्यवस्थित करके “पाती बिटिया के नाम” शीर्षक से प्रकाशित किया । बाल साहित्य में पत्र विधा की इस अनूठी पुस्तक को मध्यप्रदेश शासन ने साहित्य अकादमी के माध्यम से पुरस्कृत भी किया है। विकास दवे लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करते करते हुए देश के अत्यंत वरिष्ठ साहित्यकारों और राजनेताओं की निगाह में भी चढ़ने लगे। इसी का परिणाम था कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी द्वारा जब स्वच्छता अभियान प्रारंभ किया गया तो उन्होंने अपने इस अभियान के ब्रांड एंबेसडर के रूप में नव रत्नों में चयन किया था। साथ ही इन नवरत्नों से आग्रह किया था कि वे अपने अपने क्षेत्र के ऐसे ही और नौ नौ रत्न तय करके उन्हें भी स्वच्छता अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाएं । साहित्य क्षेत्र में एक बड़ा नाम डॉ मृदुला सिन्हा जो इस समय गोवा प्रदेश की राज्यपाल भी है, ने डॉ विकास दवे को अपने नवरत्नों में सम्मिलित करते हुए श्री नरेंद्र मोदी जी के यशस्वी स्वच्छता अभियान के ओर अधिक प्रचार का जिम्मा भी सौंपा। मातृभाषा में अध्ययन अध्यापन को प्रोत्साहन देने और हिंदी भाषा के उन्नयन के लिए सतत काम करने की उनकी इच्छाशक्ति को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें इस्पात मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति का माननीय सदस्य भी मनोनीत किया। शिक्षा क्षेत्र के विराट अनुभव के कारण जब मध्यप्रदेश शासन ने बच्चों के विद्यालय पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा और गीता के संदेश के समावेश को अनुमति देने के लिए दो समिति का गठन किया तो श्री विकास दवे उनके भी सदस्य मनोनीत किए गए। मध्य प्रदेश पाठ्यक्रम निर्माण समिति के भी वे मार्गदर्शक सदस्य रहते आए हैं। इतना ही नहीं तो मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के पाठक मंच में पढ़ी जाने वाली पुस्तकों के चयन करने वाली समिति के भी वे माननीय सदस्य रहते आए हैं । मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा दिए जाने वाले बाल साहित्य के पुरस्कारों की निर्णायक समिति के भी वे अक्सर सदस्य होते हैं। डॉ विकास दवे ने शोध के क्षेत्र में काम करते हुए अब तक 50 से अधिक शोध पत्रों का लेखन किया है जो भिन्न-भिन्न रिसर्च जर्नल्स में प्रकाशित भी हुए हैं। देशभर में शोध संगोष्ठियों तथा विश्व साहित्य सम्मेलनों आदि में उन्हें व्याख्यानों के लिए सादर आमंत्रित किया जाता है। अब तक इस प्रकार के छोटे बड़े 2,000 से अधिक व्याख्यान देकर डॉक्टर विकास दवे श्रोताओं के बीच एक ऐसा नाम बन गए हैं जिनके नाम से ही व्याख्यान मालाओं में भीड़ एकत्र होने लगी है। डॉ विकास दवे इस समय विश्व में सर्वाधिक प्रसार संख्या का कीर्तिमान स्थापित करने वाली बाल पत्रिका देवपुत्र के संपादक का दायित्व निर्वाह कर रहे हैं। इस मध्य वे प्रेस क्लब इंदौर, संपादक संघ सहित अनेक पत्रकारिता संस्थानों के माननीय सदस्य भी बने हैं। भारत भर के विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता, बाल साहित्य तथा भाषा संबंधी राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में व्याख्यान हेतु आमंत्रित किए जाते हैं। इन अनेक कामों से जुड़ने के कारण डॉ विकास दवे को देश भर की अनेक संस्थाओं ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से सम्मानित भी किया है। इनमे प्रमुख रूप से उल्लेख किए जाने वाले सम्मान इस प्रकार हैं-
बाल साहित्य प्रेरक सम्मान 2005, इन्दौर, स्व. भगवती प्रसाद गुप्ता सम्मान 2007, कानपुर, अ.भा. साहित्य परिषद नई दिल्ली द्वारा सम्मान 2010, राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास, दिल्ली सम्मान 2011, स्व. प्रकाश महाजन स्मृति सम्मान 2012, स्व. श्री धर्मचन्द जैन स्मृति सम्मान वर्ष 2012, पं. दीनदयाल उपाध्याय युवा पत्रकारिता सम्मान 2013, सरस्वती शिशु मंदिर पूर्व छात्र परिषद् द्वारा सम्मान 2014, साहित्य परिषद् का शब्द साधक सम्मान 2014, विश्व हिन्दी सम्मान 2015, बाल साहित्य जीवन गौरव सम्मान 2018, विश्वनाथ मेहता पत्रकारिता सम्मान 2020 और साहित्य क्रांति अलंकरण 2020
डॉ दवे चिर स्वस्थ रहकर साहित्यिक क्षेत्र में राष्ट्र को अपने दीर्घ अनुभव से लाभान्वित करते रहें। जय हाटकेश के गगनभेदी स्वर से आपको आपकी विद्वता को डॉ तेज प्रकाश व्यास ,वसुन्धरा के नागरवृन्द एवम साहित्य प्रेमी सम्मान करते हैं।

आलेख लेखक
डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास
